Lekhika Ranchi

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रंगभूमि--मुंशी प्रेमचंद



सोफ़िया सत्यासत्य के निरूपण में सदैव रत रहती थी। धर्मतत्तवों को बुध्दि की कसौटी पर कसना उसका स्वाभाविक गुण था, और जब तक तर्क-बुध्दि स्वीकार न करे, वह केवल धर्म-ग्रंथों के आधार पर किसी सिध्दांत को न मान सकती थी। जब उसके मन में कोई शंका होती, तो वह प्रभु सेवक की सहायता से उसके निवारण की चेष्टा किया करती।
सोफ़िया-मैं इस विषय पर बड़ी देर से गौर कर रही हूँ; पर कुछ समझ में नहीं आता। प्रभु मसीह ने दरिद्रता को इतना महत्व क्यों दिया और धन-वैभव को क्यों निषिध्द बतलाया?
प्रभु सेवक-जाकर मसीह से पूछा।
सोफ़िया-तुम क्या समझते हो?
प्रभु सेवक-मैं कुछ नहीं समझता, और न कुछ समझना ही चाहता हूँ। भोजन, निद्रा और विनोद, ये ही मनुष्य-जीवन के तीन तत्तव हैं। इसके सिवा सब गोरखधंधा है। मैं धर्म को बुध्दि से बिल्कुल अलग समझता हूँ। धर्म को तोलने के लिए बुध्दि उतनी ही अनुपयुक्त है, जितना बैंगन तोलने के लिए सुनार का काँटा। धर्म धर्म है, बुध्दि, बुध्दि। या तो धर्म का प्रकाश इतना तेजोमय है कि बुध्दि की आँखें चौंधिया जाती हैं, या इतना घोर अंधकार है कि बुध्दि को कुछ नजर ही नहीं आता। इन झगड़ों में व्यर्थ सिर खपाती हो। सुना, आज पापा चलते-चलते क्या कह गए!
सोफ़िया-नहीं, मेरा धयान उधर न था।
प्रभु सेवक-यही कि मशीनों के लिए शीघ्र आर्डर दे दो। उस जमीन को लेने का इन्होंने निश्चय कर लिया। उसका मौका बहुत पसंद आया। चाहते हैं कि जल्द-से-जल्द बुनियाद पड़ जाए, लेकिन मेरा जी इस काम से घबराता है। मैंने यह व्यवसाय सीखा तो; पर सच पूछो, तो मेरा दिल वहाँ न लगता था। अपना समय दर्शन, साहित्य, काव्य की सैर में काटता था। वहाँ के बड़े-बड़े विद्वानों और साहित्य-सेवियों से वार्तालाप करने में जो आनंद मिलता था, वह कारखाने में कहाँ नसीब था? सच पूछो, तो मैं इसीलिए वहाँ गया ही था। अब घोर संकट में पड़ा हुआ हूँ। अगर इस काम में हाथ नहीं लगाता, तो पापा को दु:ख होगा, वह समझेंगे कि मेरे हजारों रुपये पानी में गिर गए! शायद मेरी सूरत से घृणा करने लगें। काम शुरू करता हूँ तो यह भय होता है कि कहीं मेरी बेदिली से लाभ के बदले हानि न हो। मुझे इस काम में जरा भी उत्साह नहीं। मुझे तो रहने को एक झोंपड़ी चाहिए और दर्शन तथा साहित्य का एक अच्छा-सा पुस्तकालय। और किसी वस्तु की इच्छा नहीं रखता। यह लो, दादा को तुम्हारी याद आ गई। जाओ, नहीं तो वह यहाँ आ पहुँचेंगे और व्यर्थ की बकवास से घंटों समय नष्ट कर देंगे।
सोफ़िया-यह विपत्ति मेरे सिर बुरी पड़ी है। जहाँ पढ़ने कुछ बैठी कि इनका बुलावा पहुँचा। आजकल 'उत्पत्ति' की कथा पढ़वा रहे हैं। मुझे एक-एक शब्द पर शंका होती है। कुछ बोलूँ, तो बिगड़ जाएँ। बिल्कुल बेगार करनी पड़ती है।
मिसेज़ सेवक बेटी को बुलाने आ रही थीं। अंतिम शब्द उनके कानों में पड़ गए। तिलमिला गईं। आकर बोलीं-बेशक, ईश्वर-ग्रंथ पढ़ना बेगार है, मसीह का नाम लेना पाप है, तुझे तो उस भिखारी अंधे की बातों में आनंद आता है, हिंदुओं के गपोड़े पढ़ने में तेरा जी लगता है; ईश्वर-वाक्य तो तेरे लिए जहर है। खुदा जाने, तेरे दिमाग में यह खब्त कहाँ से समा गया है। जब देखती हूँ, तुझे अपने पवित्र धर्म की निंदा ही करते देखती हूँ। तू अपने मन में भले ही समझ ले कि ईश्वर-वाक्य कपोल-कल्पना है, लेकिन अंधे की आँखों में अगर सूर्य का प्रकाश न पहुँचे, तो सूर्य का दोष नहीं, अंधे की आँखों का ही दोष है! आज तीन-चौथाई दुनिया जिस महात्मा के नाम पर जान देती है, जिस महान् आत्मा की अमृत-वाणी आज सारी दुनिया को जीवन प्रदान कर रही है, उससे यदि तेरा मन विमुख हो रहा है, तो यह तेरा दुर्भाग्य है और तेरी दुर्बुध्दि है। खुदा तेरे हाल पर रहम करे।
सोफ़िया-महात्मा ईसा के प्रति कभी मेरे मुँह से कोई अनुचित शब्द नहीं निकला। मैं उन्हें धर्म, त्याग और सद्विचार का अवतार समझती हूँ! लेकिन उनके प्रति श्रध्दा रखने का यह आशय नहीं है कि भक्तों ने उनके उपदेशों में जो असंगत बातें भर दी हैं या उनके नाम से जो विभूतियाँ प्रसिध्द कर रखी हैं, उन पर भी ईमान लाऊँ! और, यह अनर्थ कुछ प्रभु मसीह ही के साथ नहीं किया गया, संसार के सभी महात्माओं के साथ यही अनर्थ किया गया है।
मिसेज़ सेवक-तुझे ईश्वर-ग्रंथ के प्रत्येक शब्द पर ईमान लाना पड़ेगा, वरना तू अपनी गणना प्रभु मसीह के भक्तों में नहीं कर सकती।
सोफ़िया-तो मैं मजबूर होकर अपने को उनकी उम्मत से बाहर समझ्रूगी; क्योंकि बाइबिल के प्रत्येक शब्द पर ईमान लाना मेरे लिए असम्भव है!
मिसेज़ सेवक-तू विधर्मिणी और भ्रष्टा है। प्रभु मसीह तुझे कभी क्षमा न करेंगे!
सोफ़िया-अगर धार्मिक संकीर्णता से दूर रहने के कारण ये नाम दिए जाते हैं, तो मुझे स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है।
मिसेज़ सेवक से अब जब्त न हो सका। अभी तक उन्होंने कातिल वार न किया था। मातृस्नेह हाथों को रोके हुए था। लेकिन सोफ़िया के वितंडावाद ने अब उनके धैर्य का अंत कर दिया! बोलीं-प्रभु मसीह से विमुख होनेवाले के लिए इस घर में जगह नहीं है।
प्रभु सेवक-मामा, आप घोर अन्याय कर रही हैं। सोफ़िया यह कब कहती है, कि मुझे प्रभु मसीह पर विश्वास नहीं है?
मिसेज़ सेवक-हाँ, वह यही कह रही है, तुम्हारी समझ का फेर है। ईश्वर-ग्रंथ पर ईमान न लाने का और क्या अर्थ हो सकता है? इसे प्रभु मसीह के अलौकिक कृत्यों पर अविश्वास और उनके नैतिक उपदेशों पर शंका है। यह उनके प्रायश्चित्त के तत्तव को नहीं मानती, उनके पवित्र आदेशों को स्वीकार नहीं करतीं।

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